एक ठनी है, दूजे की तैयारी है नियत नेक़ है, लेकिन फ़ितरत ये हमारी है अब तक अपन - अपनों से निपटे अब इश्क़ रकीबों की बारी है तकना, लड़ना और छीन लेना यही ज़िन्दगी की होशियारी है
पढ़ाई करते - करते साहित्य और पत्रकारिता का चस्का लग गया. छपास के रोग और अन्दर के विद्रोह ने पत्रकारिता को रोजी - रोटी से जोड़ दिया. अखबारों में काम करते हुए रेडियो से जुडा और आकाशवाणी ग्वालियर से शुरू हुई यात्रा ने आकाशवाणी भोपाल में लम्बा पड़ाव लिया. इसी बीच टी वी में सक्रिय रूप से काम करने का अवसर मिला. केन्द्र में हमेशा विकास और जनसामान्य से जुडे मुद्दे ही रहे.दिल्ली के एक मीडिया संसथान में लम्बी पारी खेलने के बाद इन दिनों मध्यप्रदेश में कार्यरत हूँ.